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कहानी ‘अर्धरात्रि का सूरज’ एक संस्कृति विशेष का प्रतिनिधित्व करती है – प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा

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suresh chandra shukla

Credent TV / नार्वे से प्रकाशित हिन्दी और नार्वेजीय भाषा की पत्रिका द्वारा आयोजित संगोष्ठी में लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ने अर्धरात्रि का सूरज का पाठ किया जिस पर परिचर्चा संपन्न हुई, जिसमें मुख्य अतिथि थे शैलेन्द्र कुमार शर्मा, अध्यक्षता की थी डॉ. वीर सिंह मार्तण्ड और सञ्चालन किया था सुवर्णा जाधव ने।

कहानी में भौगोलिक परिघटना और मानवीय संवेदना
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ की कहानी ‘अर्धरात्रि का सूरज’ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह एक ऐसी रचना है जो देश-विदेश में ही नहीं वरन एक संस्कृति विशेष का प्रतिनिधित्व करती है। भौगोलिक परिघटना को मानवीय संवेदनाओं में सम्मिलित कर देना लेखक की विशेषता है।
प्रेम का एक स्वतन्त्र व्यक्तिक अनुभव

नीदरलैंड के प्रो. मोहन कान्त गौतम ने कहा, “मैं दो वर्ष नार्वे में रहा हूँ और थ्रोम्सो नगर गया हूँ जिसका कहानी में जिक्र है. इस कहानी में प्रेम का एक स्वतन्त्र व्यक्तिक अनुभव सामने आता है जिसमें द्वन्द्व और ख़ुशी का साफ़ चित्रण हुआ है। अनीता यूरोपियन लड़की है।

अर्धरात्रि के सूरज का सौन्दर्य
वहां अर्धरात्रि के सूरज का सौन्दर्य का बहुत अच्छा कहानी में वर्णन हुआ है जहाँ हजारों लोग उसे देखने जाते हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह कहानी बहुत अच्छी है क्योंकि लेखक ने जॉन, अनीता, मारित और एरिक के हों जो इस कहानी में पात्र है इनके सम्बन्ध जो दिखाए हैं यह पश्चिमी देशों में बहुत दिखाई देते हैं, इसका चित्रण बहुत सुन्दर तरीके से लेखक ने किया है।

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नारीमन की यात्रा
इला जायसवाल ने एक पाठक की दृष्टिकोण से अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नारीमन की यात्रा है इस कहानी में। कई बार नारी का मन उलझ जाता है एक उम्र होती है जब उसे आगे बढ़ने की चाह होती है यदि उसमें प्रेम और सहानुभूति का मिश्रण जब उसमें होता है तो उससे वह आकर्षित हो जाती है। आपका होने वाला जो जीवनसाथी है वह उसे आर्थिक रूप से सम्बल प्रदान करे। यह सोच विश्व के हर कोने में पायी जाती है।
डॉ. रश्मि चौबे के अनुसार इस कहानी में अलौकिक प्रेम के दर्शन होते हैं।

प्रेम/भावनात्मक भूगोल से ऊपर
डॉ. अशोक कौशिक ने कहा कि लेखक ने नार्वे के थ्रोम्सो शहर के सौंदर्य का चित्रात्मक शैली में सुन्दर वर्णन किया है. पश्चिमी की झलक इस कहानी में दिखती है। परन्तु भावनात्मक सम्बन्ध भूगोल से बहुत ऊपर है. यह बात स्पष्ट रूप से कहानी में झलकती है।

बलराम अग्रवाल के अनुसार कहानी का शीर्षक अर्धरात्रि का सूरज एक प्रतीक है। लेखक ने ट्रोम्सो नगर को उत्तरी देशों का पेरिस कहा। भावनात्मक सम्बन्ध भूगोल से बहुत ऊपर। नार्वे में सूरज सहलाता है जबकि भारत में सूरज चुभता है। यह एक मनोवैज्ञानिक कहानी है।

कहानी का चित्रांकन-फिल्मांकन की तरह
ओम सपरा ने कहा कि कहानी सुनकर ऐसा लगा कि भारत में रहकर हम नार्वे की सैर कर रहे हैं। कहानी का चित्रांकन-फिल्मानाकन की तरह लगता है: “भाग्य एक सुन्दर घर की तरह में होता है जिसमें नयी कार और महंगे फर्नीचर की आवश्यकता होती है।”

डॉ. हरी सिंह पाल के कहा कि यह कहानी पच्चीस साल पहले लिखी कहानी है। यह नारी केंद्रित कहानी है।
बड़ी संवेदनापूर्ण और भावनापूर्ण
प्रो योगेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि लेखक का कहन अर्थात शैली है वह बहुत सुन्दर है। यूरोप प्रेम और सौन्दर्य का अभिराम दृश्य है ही पर संवेदना की कोई सीमा नहीं होती। यह परिस्तिथियाँ हर देश में हैं भारत भी इससे अछूता नहीं है। बड़ी सम्वेदनापूर्ण और भावनापूर्ण यह कहानी है।

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प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहानी पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इस कहानी को मैं प्रतीकात्मक कहानी मानता हूँ क्योकि इसका शीर्षक बहुत कुछ कह देता है। यह एक भौगोलिक परिघटना है. एक प्रेम त्रिकोण की चर्चा यह कहानी करती है। नए प्रकार का संचार करती हुई यह कहानी समापन की ओर ले जाती है। की हमें देखना चाहिए कि खुशियाँ जो हैं क्या केवल धन सम्पदा में हैं क्या केवल शरीर सुख में है. क्या भौतिकता में है। उसके बीच में वह आशा का संचार करती हुई हमें एक ऐसे संहार की ओर ले जाती है जबकि रचनाकार ने बहुत सुन्दर ढंग से अतीत की उलझी हुई प्रेम अनुभूतियों के बीच में एक नए प्रकार की भाषा का संचार किया है और इसमें एक छोटा सा प्रसंग भी आता है की एक स्त्री जब स्वेटर बुनती है तो वह दोनों पर ध्यान रखती है. वह स्वेटर पर भी ध्यान रखती है और वह बच्चे पर भी ध्यान रखती है की जो बच्चा उसके सलाई से उसको तकलीफ भी हो सकती है. अनीता भी कुछ इसी प्रकार की स्थितियों के बीच से एक नए प्रकार के जीवन को आनंद के साथ देखती हुई आगे बढ़ती है। एरिक को जो इस प्रकार की स्मृतियाँ हैं, जो दुःस्वप्न हैं उनका अहसास नहीं होने देती है. और एक नए प्रकार के जीवन का संचार उसके यहाँ होता है। वह जॉन के पत्रों को फाड़कर फेक देती है। बहुत से संकेतों में लेखक ने घटनाओं को व्यक्त किया है।

डॉ. पूनम सिंह, डॉ. कुंअर वीर सिंह मार्तण्ड और डॉ. करुणा पांडेय ने भी कहानी के विभिन्न पक्षों को व्यक्त करते हुए अपनी बात कही।

अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन
देश-विदेश के कवियों ने अपनी सुमधुर रचनायें सुनायी जिसे बहुत पसंद किया गया।
कविसम्मेलन में भारत से भाग लेने वालों में प्रमिला कौशिक, डॉ. हरी सिंह पाल, कुलदीप सलिल, ओम सपरा और डॉ. हरनेक सिंह गिल दिल्ली, इला जायसवाल नोएडा, डॉ. रश्मी चौबे गाजियाबाद, डॉ. रामगोपाल भारतीय मेरठ, प्रसिद्ध व्यंग्यकार कवि सूर्यकुमार पांडेय, डॉ. मंजू शुक्ल और प्रो. योगेंद्र प्रताप सिंह लखनऊ, सुवर्णा जाधव पुणे और डॉ. कुंवर वीर सिंह मार्तण्ड कोलकाता से थे।
विदेशों से कवितापाठ करने वालों में नीरजा शुक्ला कनाडा, डॉ. राम बाबू गौतम अमेरिका, जय वर्मा ब्रिटेन, सुरेश पांडेय स्वीडेन और सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ओस्लो, नार्वे थे।

धन्यवाद ज्ञापन और कार्यक्रम की समीक्षा – डॉ. कुँअर वीर सिंह मार्तण्ड
कार्यक्रम के अंत में साहित्य त्रिवेणी पाक्षिक के संपादक डॉ. कुँअर वीर सिंह मार्तण्ड ने अपने अध्यक्षीय भाषण में सभी को धन्यवाद दिया और नए वर्ष की शुभकामनायें दीं। उन्होंने कार्यक्रम की बहुत अच्छी समीक्षा प्रस्तुत की.
उन्होंने कहा कि सभी ने अपनी बहुत सुन्दर रचनायें सुनायीं। उन्होंने रचनाकार सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ को कहानी के लिए बधाई देते हुए कहा कि जो उन्होंने कविता ‘रागनी मिलन पुकार, प्रियतमा असीम चाह, सांस आख़िरी तलाक सजाऊँ अश्रु की लड़ी’ सुनाई वह बहुत मधुर और संवेदनात्मक थी और वह नीरज के गीत ‘कारवां गुजर गया’ से भी अच्छी रचना है।

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