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विवाह : एक वीडियोग्राफी कांड – डा अजय अनुरागी

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आजकल शादी एक सामाजिक कांड न होकर फोटोग्राफी और वीडियो ग्राफी कांड बनकर रह गई है ।


आजकल शादी एक सामाजिक कांड न होकर फोटोग्राफी और वीडियो ग्राफी कांड बनकर रह गई है ।
कृपया शादी समारोहों को समाज की नजरों से न देखें , केवल कैमरे की नजर से ही देखें । पूरी शादी में बारातियों से ज्यादा वीडियोग्राफर और फोटोग्राफर ही फुदकते रहते हैं। वे दूल्हा दुल्हन दोनों को नचाते फुदकाते भी रहते हैं ।
और दूल्हा दुल्हन अच्छे से अच्छे पोज के लिए , खराब से खराब प्रभाव छोड़ते चले जाते हैं ।
शादी में कैमरामैनों की फौज देखकर लगता है कि आयोजन केवल फोटो और वीडियो शूटिंग युद्ध के लिए किया जा रहा
है । जहां कैमरे से कैमरे भिड़ जाते हैं, पोज से पोज टकरा जाते हैं , और एंगल से एंगल लड़ जाते हैं ।
दूल्हे दुल्हन की नजर में शादी का कोई सामाजिक महत्व है ही नहीं। केवल समारोह का महत्व है। सम्मानजनक तो यह रहता कि अतिथियों को इसमें आना ही नहीं चाहिए था। कार्ड भेजा था तो लिफाफा भेज देते , इतिश्री हो जाती । अतिथि शादी में आकर फोटोग्राफी में व्यवधान तो नहीं डालते । रिश्तेदारों ने शादी में पहुंचकर फोटोग्राफरों का काम बढ़ा दिया है। फोटो ग्राफर रिश्तेदारों को बार-बार हटाते हैं । कभी उन्हें आगे सरकाते हैं , कभी उन्हें पीछे धकियाते हैं । उन्हें हटाते हटाते उनके हाथ दुखने लगते हैं । वे कैमरे को देखें , कि रिश्तेदारों को देखें। कब तक रिश्तेदारों को कैमरे की नजर से देखा जा सकता है?
रिश्तेदार आदत से लाचार हुआ करते
हैं । मनुहार के साथ आमंत्रित किया गया है , तो हर फोटो में अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं । हर फोटो का मजा लेना चाहते हैं । मतलब यह है कि हर अवसर पर कैमरे में घुसना चाहते हैं । चाय भी पी रहे हैं , तो कप के साथ फोटो होनी चाहिए। प्लेट उठाकर गुलाब जामुनों से भर ली है , तो भी फोटो
हो । मतलब हर गतिविधि का फोटो उतरवाने को तैयार रहते हैं।
कुर्सी पर बैठे-बैठे उबासी लेने वाला रिश्तेदार भी कैमरे को देखकर सचेत हो जाता है।
कैमरा आयोजनों में उदासियों और उबासियों को भी तोड़ने का महत्वपूर्ण काम करता है। कुछ लोग सिर्फ फोटो के लिए ही आयोजन में जाते हैं । और जब फोटोग्राफर टरका देता है , तो सेल्फी लेते रहते हैं ।
दोस्तों, आज विवाह खुशियों की धमाल नहीं रहा ,बल्कि यह आयोजन अब कैमरे का कमाल हो गया है । लोग कैमरे की नजर में रहना पसंद करते हैं ।
विवाह के प्रारंभ में फोटोग्राफर दबाव में रहता है । किसे कैमरे में खींचे ? या किसे साइड में खींचे ? किसे हटाए , किसे सरकाए?
थोड़ी देर बाद वह सबको दबाव में ला देता है । और पूरे आयोजन में उसका दबदबा बना रहता है। पूरी बारात को कंट्रोल करने के लिए वह अकेला काफी होता है। जिधर कैमरा है , उधर अनुशासन है।
माता-पिता दबाव में हैं , कि विवाह आयोजन में उनकी चल नहीं रही है। फिर उनसे पूछिए कि साथ में यह बारात क्यों चल रही है ? इन बारातियों की परेड क्यों करवा रहे हो? इनको बुलाया क्यों गया है?
दूल्हे ने दुल्हन को पसंद किया । दुल्हन ने दूल्हे को पसंद किया । और दोनों ने मिलकर फोटोग्राफर को पसंद कर लिया । इसलिए वह उनके प्रत्येक गोपनीय दृश्य में साथ रहता है । फोटो ग्राफर दोनों को आसानी से संभाल रहा है। दूल्हा दुल्हन मां बाप की जगह फोटोग्राफरों , वीडियो ग्राफरों की हर बात मान रहे हैं। उनके हर आदेश और आज्ञा का पालन कर रहे हैं।

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माता-पिता ने रिश्तेदार और बाराती पसंद किए हैं ,इसलिए वे उन्हें संभाल रहे
हैं । इस स्थिति में रिश्तेदार केवल अफसोस कर सकते हैं । रोष करने से कुछ नहीं होगा ।
पूरे विवाह समारोह को दूल्हा दुल्हन ने हाईजैक कर लिया है ।
ध्यान रहे विवाह के एल्बम दीमक की नजर में आने से पहले एक दो बार ही देखे जाते हैं। जिन्हें बड़ी उम्मीद के साथ शूट किया जाता है , उन्हें दीमक बड़ी उम्मीद के साथ एक-एक करके सूट करती चली जाती है । जिन्हें कोई नहीं देखता है , अंत में उन्हें सिर्फ दीमक देखा करती है ।
एक बारात मंडप में पहुंची तो खाते-खाते बारातियों ने देखा , प्री वेडिंग वीडियो चल रहा है। सब असमंजस में पड़ गए । एक दूसरे से पूछने लगे , ये विवाह हो गया है या अब होगा ?
दूल्हा दुल्हन ने सामूहिक रूप से पोस्ट वेडिंग से ज्यादा जोर , प्री वेडिंग में लगा डाला है।
दर्शक आश्चर्य चकित होकर दांतो तले तिनका दबाते हुए बोले , सब प्री में ही हो जाएगा , तो पोस्ट वेडिंग में क्या करोगे
भाई ? उधर के लिए भी कुछ छोड़ दो। उधर बड़ी दुनिया है । उधर के लिए सारा का सारा गोल्ड ओल्ड होकर रह जाएगा। ये जो कुछ बोल्ड दिखाई दे रहा है न , बाद में वो सब फोल्ड होता हुआ दीखेगा।
अरे रे रे , ये क्या सीन चल रहा है भईए ? पोस्ट वेडिंग वाला काम प्री वेडिंग में ही कर डाला। वाह क्या करिश्मा है ? जो काम हम पोस्ट वेडिंग में नहीं कर पाए , ये लोग प्री वेडिंग में ही निपटाए दे रहे हैं । हे भगवान , यह क्या हो रहा है ?
तभी आकाशवाणी हुई । सावधान समाज बदल रहा है । चुपचाप देखते रहो ।
प्री वेडिंग सूट का वीडियो तब और मजा देगा , जब दो एक बच्चे किलकारी मारते हुए ठुमकेंगे , आज मेरे बाप की शादी है । आज मेरी मॉम की शादी है।
समाज ऐसे ही बदलेगा। समाज ऐसे ही टूटेगा।
प्री वेडिंग में एक तकनीकी समस्या और आती है कि इसमें तलाक नहीं हो पाता है । किससे लोगे तलाक ?
जिस रिश्ते का कोई तल नहीं बन पाया और उस तल को जब तक लॉक नहीं किया गया है तो तलाक कैसे हो सकता है?

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तलाक का क्या है , जब जी मिचलाया , ले लिया तलाक। छोड़िए इस विषय को।
उधर देखिए , पोस्ट वेडिंग में ही जब दोनों के विचार नहीं मिल पाते हैं , तो प्री वेडिंग में विचार मिलने की वेलिडिटी कितनी होगी , यह कौन जानता है ? मगर वेलीडीटी का क्या है ? वेलिडीटी समाप्त होने से पहले ही लोग सिम बदल लेते हैं। और जीवन में नई सिम की वैलिडिटी शुरू हो जाती है।
बिना विवाह किए , मतलब विवाह पूर्व ही , विवाह की जरूरतें पूरी हो जाऐं , तो क्यों पडा जाए विवाह के इस पचड़े में ? प्री वेडिंग से यह सत्य सरलता से जिसकी समझ में आ जाता है , वह पोस्ट वेडिंग के भरोसे रहता भी नहीं है। वैसे भी जो उत्सुकता प्री में होती है , वह पोस्ट में होती ही नहीं ।
फिर भी विवाह होते रहें , यही समाज के हित में है। विवाह न हों तो , सब भरे हुए रिश्तेदार भी , धरे रह जाएंगे। न फूफा फूलेगा , ना मौसा मचलेगा । न मामा मुंह फुलाएगा , न बूआ बिदकेगी। न ताऊ तमतमाएगा ,न चाचा चिरामिराएगा।
यदि विवाह के अवसर न आऐं , तो ये सब परिजन रूठना भी भूल जाएंगे । इसलिए विवाह होते रहें। रिश्तेदार रूठते
रहें । इस बहाने कुछ लोग रिश्तेदारों को मनाते रहें , और कुछ का खून जलाते रहें ।
इति वैवाहिक शाश्वत कथायाम समा प्तम।