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डा अजय अनुरागी

सवाल खड़ा करें – डा अजय अनुरागी

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आप क्यों खड़े हुए हैं ?

दोस्तों , आज हमारे सामने बहुत से सवाल खड़े हुए हैं । मैं उन सभी सवालों से यह सवाल पूछना चाहता हूं कि आप क्यों खड़े हुए हैं ?
आप बैठ जाइए । आप बैठ जाएंगे तो भी आपके सवाल खड़े ही रहेंगे । इसलिए आप खड़े-खड़े अपने पैर भारी न करें ।
मेरा मानना है कि सवाल चाहे बैठा हुआ हो या खड़ा हुआ , वह होता सवाल ही है । सवाल अगर लेट भी जाएगा तो भी वह सवाल ही माना जाएगा। सवाल को आप चाहे पर्वत पर ले जाएं , या पाताल में पहुंचा दें , रहेगा वह सवाल ही ।
यह देश सवालों के दौर से गुजर रहा है । जिधर देखो उधर सवाल ही सवाल खड़े दिखाई देते हैं । संसद से लेकर सड़क तक सवाल पर सवाल खड़े हुए हैं ।


दोस्तों , देश हित में खड़ी हुई चीज ठीक नहीं होती है। बैठी हुई चीज ही बढ़िया होती है । मुख्य सवाल यह है कि देश में यह सवाल खडे क्यों हो रहे हैं ? देश हित में सवालों को बैठ जाना चाहिए , और उत्तरों को खडे हो जाना चाहिए । अफसोस उत्तर सवालों की छाया में बैठकर सुस्ता रहे हैं । देश की भलाई इसी में है कि सवाल बैठ जाएं और उत्तर खड़े रहें । जैसे कक्षा में अध्यापक बैठा रहता है और बैठे-बैठे ही सवाल पूछता है । विद्यार्थी खड़ा रहता है और खड़े-खड़े ही उत्तर देता है । यही क्रम सब जगह लागू होना चाहिए । सवाल बैठा रहे और उत्तर खड़ा रहे।


उत्तर खड़ा रहेगा तो देश अपने आप तरक्की के रास्ते पर चलता रहेगा । जब सवाल खड़ा हो जाता है तो देश तरक्की के रास्ते से भटक जाता है । इतिहास बताता है कि सवाल जब- जब खड़े हुए हैं तब तब बवाल खड़े हो गए हैं , और जब-जब बवाल खड़े होते हैं तब तब सवालों में से निकलकर और सवाल खड़े हो जाते हैं ।
हमारे बीच में दो तरह के व्यक्ति होते हैं । कुछ सवालों को खड़ा करते रहते हैं और कुछ सवालों को बिठाते रहते हैं। वैसे सवाल कभी बैठते नहीं हैं । जितना बिठाओगे उतना ही उन्हें खड़ा पाओगे । सवाल खड़े करने वाले खिलोने की तरह सवाल को कहीं से भी खड़ा कर सकते हैं। और कहीं भी घुमा सकते हैं।
मैंने एक सज्जन से कहा , भाईसाहब , आप अपने सवाल को बिठा दीजिए । आपने बेकार में अपने सवाल को खड़ा कर रखा है । सवाल की जगह आप खुद खड़े हो जाएंगे तो ठीक रहेगा। आप एक ही सवाल को बार-बार क्यों खड़ा कर रहे हैं ? आपने एक सवाल के इतने सवाल खड़े कर दिए हैं कि दूसरे व्यक्तियों के खड़े होने की जगह नहीं बची है।
वे बोले , मैं तो मूंछ का बाल खड़ा कर रहा हूं , सवाल खड़ा कहां कर रहा हूं? मैं तो खुद खड़ा होना चाह रहा हूं। लोग मुझे खड़ा होने ही नहीं दे रहे हैं। जब खड़ा होता हूं तभी बिठा देते हैं । इसलिए मैं अपनी मूंछ का बाल खड़ा किए दे रहा हूं । ताकि सवाल खड़ा रहे ।
मैंने कहा , ये क्या माजरा है ? आपके खड़े होने से पहले सवाल खड़ा हो गया है । आप बैठ जाइए ताकि देश हित में सवाल भी बैठ जाए । वे बोले , मेरे बैठ जाने से देश हित में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सवाल तो फिर भी खड़ा ही रहेगा ।
मैंने कहा , क्या आप इस तात्कालिक सवाल को खड़ा होने से नहीं रोक सकते हैं ? वे बोले नहीं रोक सकता। सवाल स्वतः खड़ा हो रहा है । इसलिए इसे रोकना हमारे हाथ में नहीं है ।
दोस्तों , ये सवालों के खड़े होने के दिन हैं । एक महाशय को अधिकृत तरीके से खड़ा करने के बाद इसलिए बिठा दिया गया कि उनको खड़ा करते ही एक अनधिकृत सवाल खड़ा हो गया था । जब सबके बिठाने से भी अनाधिकृत सवाल नहीं बैठा तो महाशय को ही बिठा दिया गया । महाशय का कथन है कि , मेरे खड़े होने की राह में जानबूझकर सवाल खड़े किए गए थे ताकि मुझे बिठाया जा सके । मैं बैठ जरूर रहा हूं लेकिन सवाल को बैठने नहीं दूंगा । और सचमुच सवाल खडे का खड़ा रखा है उन्होंने।

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हमारे सामने सवालों का जंगल फैला हुआ है। जिसमें कई क्वालिटी के सवाल खड़े हुए हैं। झाड़ी नुमा सवाल , बबूल नुमा सवाल , बरगद नुमा सवाल ,कुछ कंटीले सवाल हैं , कुछ छंटीले सवाल हैं और कुछ छैल छबीले सवाल हैं , आदि आदि।
इन दिनों अगर सवाल खड़े रहेंगे तो प्रत्याशी क्या खाक खड़े रह पाएंगे ? उनके खड़े होने का मतलब ही क्या है?
आइए , पड़े हुए सवालों को सीधा खड़ा करें । और खड़े हुए सवाल के ऊपर फिर से सवाल खड़ा करें। यदि सवाल खड़ा नहीं कर सकते हैं तो सवाल के ऊपर खुद खड़े हो जाएं , ताकि सवाल खड़ा हुआ दिखाई देता रहे। सवाल खड़ा होता दिखाई देता रहेगा तो बवाल खड़ा होता दिखाई देता रहेगा।
बस देखते रहो, दिखाते रहो । सवालों को आगे बढ़ाते रहो।