डा अजय अनुरागी
हवा के दबाव में – अजय अनुरागी
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1 month agoon
डा अजय अनुरागी
काफी कोशिशों के बाद भी हवा नहीं बन पा रही थी। हवा के न बन पाने से भारी बेचैनी महसूस हो रही थी। हवा बने तो हल्का पन महसूस हो । उन्होंने हवा बनाने में पूरी ताकत झोंक दी , किंतु हवा नहीं बनी।
हवा पूरी रात नहीं बनी। पूरी रात नींद नहीं आई। दिन में भी नहीं बन पाई। दिन भी बेकार जाने लगा।
एक दिन अचानक हवा बन गई। हवा बनने से उमडन – घुमडन शुरू हो गई । बेचैनी बढ़ने लगी। परेशानी यह थी कि भारी दबाव के बावजूद हवा निकल नहीं पा रही थी। हवा निकले तो चैन मिले। अब हवा बन तो गई किंतु निकल नहीं रही थी। बड़ी मुसीबत आन पड़ी।
प्रायः प्राणी हमेशा हवा के बीच में फंसा रहता है । हवा हमेशा परेशानी का कारण रही है। एक बार बनना शुरू हो जाती है तो बनती ही चली जाती है । फिर रुकने का नाम नहीं लेती है । कुछ करो या न करो , बनती ही है ।
हवा जब निकलना शुरू हो जाती है तो निकलती ही है । कोई रोक नहीं पाता उसे। हवा के बनने और निकलने के बीच कोई बाधा बनता है, तो उसे हवा बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करती है और एक बड़े विस्फोट के साथ सब कुछ ध्वस्त कर देती है ।
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हवा के बनने और निकलने की ही तरह हवा का बनाना और निकालना दोनों क्रियाएं आसान नहीं हैं। अगर अचानक हवा बन जाती है तो वह अचानक बिगड़ भी जाती है । रात ही रात में हवा बन भी जाती है तो बिगड़ भी जाती है । कुछ लोगों ने हवा का भंडारण कर रखा है , ताकि हवा जरूरत के वक्त काम आ सके। कुछ केवल हवा को बनाने और बिगाड़ने में ही शक्ति का सत्यानाश करके खुश होते रहते हैं।
लोकतंत्र में लोगों का विश्वास है कि मनुष्य कुछ नहीं कर पाता है , जो कुछ करती है हवा करती है । विरले ही होते हैं जो हवा पर भी दबाव बना देते हैं ।
एक महाशय से मैंने पूछा इतनी रात को कहां से आ रहे हो ? वह बोले हवा बना कर आ रहा हूं । मैंने फिर पूछा कल कहां से आ रहे थे? तो उन्होंने कहा कल हवा निकाल कर आ रहा था । मुझे आश्चर्य हुआ एक ही व्यक्ति दो परस्पर विरोधी कार्य अच्छे ढंग से कर रहा है । यह जरूर हवा का विशेषज्ञ होगा। वास्तव में वह विशेषज्ञ निकला । वह जानता था कि हवा को कब , किसके लिए और कितना बनाना है। वह अपने पक्ष में हवा का इस्तेमाल करना भी जानता था तथा दूसरों के विरोध में भी वह हवा को इस्तेमाल करने में पारंगत था।
हवा है ही इतनी हल्की जो आसानी से बन भी जाती है और बिगड़ भी जाती है। यह भी होता है कि दिनभर हवा बनाई और बनी – बनाई हवा के साथ रात को सोए , मगर सुबह जगे तो देखा हवा निकल चुकी है ।
कहते हैं अधिकांश हवा रात में ही ज्यादा असरकारी होती है। रात ही रात में हवा बन भी जाती है और रात ही रात में हवा बिगड़ भी जाती है । हवा का क्या है , जो हवा कुछ देर पहले पक्ष में चल रही थी, वही हवा कुछ देर बाद विपक्ष में चलने लगती है । हवा को तो सिर्फ चलना होता है। इधर खींच लोगे तो इधर चलने लगेगी , उधर वाले खींच लेंगे तो उधर चलने लगेगी । हवा का क्या है, बने, बने और ना बने । बनते , बनते ही रह जाए। हवा का क्या है , बने , बने और बनती चली जाए । रोकते , रोकते भी न रुके।
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कुछ लोग हवा के भरोसे रहते हैं। हवा से फडकते हैं , हवा से धड़कते हैं । हवा जिधर की चलती है, उधर ही चले जाते हैं। हवा नहीं चलती है तो चुपचाप जहां के तहां पड़े रहते हैं । हवा लगने पर व्यक्ति उड़ने लगता है और हवा निकलने पर पैदल भी नहीं चल पाता ।
प्रायःहवा दस दिशाओं से असर करती है । जब ऊपर की हवा बहती है तो नीचे की हवा खिसक जाती है । जब बाहरी हवा अपना प्रभाव दिखाती है, तो भीतरी हवा सरक जाती है । इसलिए समझदार लोग हवा से बचकर रहते हैं। जितनी हवा की जरूरत होती है, उतनी से काम चलाते हैं। फालतू हवा पर ध्यान नहीं देते।
और कुछ लगे या ना लगे, यदि हवा लग गई तो समझो सब कुछ लग गया । हवा का लगना भी बुरा है। जिनको हवा लग जाती है , वे एक दिन हवा की चपेट में आकर पानी भी नहीं मांग पाते हैं। इसलिए हवा के दबाव को दवा समझ कर ग्रहण करलें , हवा निकल जाएगी तो कोई दवा भी काम नहीं करेगी।समझे।
Credent TV Editorial Team
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